फिल्म की शुरुआत पश्चिम बंगाल के चंदरपुर नामक एक रहस्यमयी गाँव से होती है, जहाँ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मासिक धर्म शुरू करने वाली बेटियों को बलि चढ़ाई जाती है। शुभांकर (इंद्रनेल सेनगुप्ता) इस गाँव का बच्चे वाला जन्मा बेटा था, लेकिन वह इस कुप्रथा से दूर भागने का विकल्प चुनकर कोलकाता में अपनी पत्नी अंबिका (काजोल) और बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) के साथ खुशहाल जीवन बसा लेता है। लेकिन जब शुभांकर की मृत्यु होती है, तो अंबिका और श्वेता को अनजाने में वेही गाँव बुला लेता है। वहाँ अचानक शुरू हो जाती हैं अनौखी घटनाएँ—ग्रामीणों की बेटियाँ गायब होती हैं, और उन्हें “दोइत्तो” नामक राक्षसी शक्ति उठाकर ले जाती है । अब जब इस घातक शक्ति की नजर अंबिका की बेटी पर पड़ती है, तो एक माँ की सीमा-पर-सीमा घूमती जंग युद्ध बन जाती है।

अभिनय (Performance)
काजोल (अंबिका):
यह फिल्म पूरी तरह से काजोल के दमदार प्रदर्शन पर आधारित है। आलोचकों का कहना है कि उन्होंने जिस भीक्रीय भाव में माँ की तेज़, संवेदनशील और रक्षा करने वाली माँ की भूमिका निभाई है, वह बेहद प्रभावशाली है। Koimoi के अनुसार, “Without her, this movie would have been a shipwreck!”। वहीं Navbharat Times ने उन्हें 2.5/5 रेटिंग की फिल्म में “दमदार” बताया । द्रुतगामी दृश्यों से लेकर गहरे भावुक पलों तक, काजोल ने पूरे आत्मविश्वास और शक्ति के साथ निभाया है।
रोनित रॉय (सरपंच जयदेव):
एक संदेहास्पद, पर शक्तिशाली गांव-सरपंच के रूप में रोनित ने अपनी उपस्थिति जमाई। Navbharat Times का मानना है कि “रॉनित रॉय की एक्टिंग बाज़ी मार ले गई” । इसी तरह Indian Express में भी उनकी भूमिका को ठोस बताया गया है ।
इंद्रनेल सेनगुप्ता (शुभांकर):
शुभांकर की भूमिका सीमित है, परन्तु महत्वपूर्ण मोड़ में उसे उचित संवेदना दी गई है।
खेरीन शर्मा (श्वेता):
एक युवा कलाकार के तौर पर उन्होंने भूमिका निभायी है, हालांकि Navbharat Times ने उनके भाव-प्रदर्शन को “फीका” बताया है , लेकिन Times of India ने उनके अभिनय को सराहनीय बताया ।
अन्य सहकर्मी जैसे रूपकथा चक्रवर्ती, जितिन गुलाटी और दिब्येंदु भट्टाचार्य ने भी अपनी भूमिकाएँ सटीक रूप से निभाईं ।
🎬 निर्देशन और पटकथा
निर्देशक विशाल फूरिया ने छोरी और शैतान जैसी फिल्मों के अनुभव के साथ यह पौराणिक-दैवीय हॉरर फिल्म तैयार की है।
- पहला हाफ धीमा लेकिन सस्पेंस से लबरेज़, गाँव की वातावरण रचना में सफल ।
- दूसरा हाफ काफी तेज़, क्लाइमैक्स की ओर इमोशनल और डरावनी घटनाओं की भरमार ।
लेकिन कुछ आलोचकों का मानना है कि कहानी “प्रेडिक्टेबल” है—ट्विस्ट अपेक्षित लगते हैं, और पटकथा सपाट बनी रहती है । Hindustan Times ने कहा कि “भले ही सभी घटक सही हों, निर्देशन में उस अतिरिक्त “हीट” का अभाव है” ।
🎥 तकनीकी पक्ष (वीएफ़एक्स, सिनेमैटोग्राफी, ध्वनि)
- सिनेमैटोग्राफी: गाँव, हवेली, जंगल का वातावरण गहरा और डरावना बना है—Pushkar Singh की शूटिंग की तारीफ़ होती है ।
- VFX: मिश्रित प्रतिक्रियाएँ—कुछ दर्शकों ने VFX को प्रभावी और क्रीपी बताया, TimesOfIndia.in इसे “visually rich” कहा । वहीं NDTV और Indian Express से जुड़े स्रोतों ने VFX को कमजोर व पुराने CGI जैसा बताया ।
- ध्वनि और संगीत: बैकग्राउंड स्कोर “ठीक-ठाक” माना गया है, लेकिन “वायरल जंप‑स्केयर” के साथ बैकग्राउंड स्कोर थोड़ा और दमदार हो सकता था ।
🗓️ बॉक्स ऑफिस एवं दर्शक प्रतिक्रियाएँ
फिल्म का पहला हफ्ता मजबूत रहा, लेकिन जून के दूसरे हफ्ते रिलीज Sitaare Zameen Par जैसी बड़ी फिल्मों से मुकाबला करना पड़ा।
ऑडियंस रिएक्शन्स (Twitter से):
- Filmibeat समेत कई ऑनलाइन समीक्षकों ने फिल्म को “3–3.5 स्टार” रेट किया ।
- Economic Times के अनुसार, “Netizens hail Kajol’s brilliant performance, praise VFX” ।
✅ निष्कर्ष: कौन देखे, किसके लिए नहीं
माँ उन दर्शकों के लिए एक अच्छा विकल्प है:
- अगर आप पौराणिक/मायथोलॉजिकल हॉरर पसंद करते हैं—खासकर देवी‑राक्षस कथा में रुचि है,
- काजोल और रोनित रॉय जैसे कलाकारों के प्रशंसक हैं,
- आप गहरे सस्पेंस और जंप‑स्केयर वाले दृश्यों की तलाश में हैं,
तो यह फिल्म आपके लिए निश्चित रूप से देखने लायक है।
लेकिन यदि आप:
- गहराई वाली पटकथा या अनावश्यक ट्विस्ट्स की उम्मीद कर रहे हैं,
- बेहतरीन VFX पसंद करते हैं,
- या हॉरर‑थ्रिलर के नए आयाम खोज रहे हैं,
तो यह फिल्म आपको शायद पूरी तरह से संतुष्ट न कर पाए—यह “ज्यादा नहीं, पर बेज़बूझा भी नहीं” की श्रेणी में आती है।
🔢 रेटिंग सारांश
स्रोत | रेटिंग |
---|---|
Koimoi | 3.5–4 ⭐ (काजोल + बेटी के अभिनय पर जोर) |
123Telugu | 2/5 ⭐ |
Navbharat Times | 2.5/5 ⭐ |
Times of India | 3/5 ⭐ |
Filmibeat, Filmibeat (रिव्यू और रेटिंग) | 3–3.5 ⭐ |
NDTV | 2/5 ⭐ |
Hindustan Times | क्रिटिकल, धीमे pacing की वजह से फोकस गायब |
🎯 औसत: लगभग 2.5–3.5 ⭐⭐।
🎥 संक्षेप में
- कहानी: पौराणिक पृष्ठभूमि पर आधारित हॉरर‑थ्रिलर
- मुख्य आकर्षण: काजोल का गहरा, तीव्र अभिनेय और मां‑मुलक सशक्त भावना
- मजबूत बिंदु: माहौल‑निर्माण (गांव‑हवेली की थ्रिल), रोनित रॉय की सहयोगी भूमिका, पौराणिक स्पर्श
- कमज़ोर पक्ष: प्रेडिक्टेबल प्लॉट, कमजोर VFX, संवादों की पटरी जस की तस
🎬 अंतिम सलाह
माँ (2025) उन दर्शकों को मनोरंजन देगी जो काजोल की अभिनय शक्ति को देखने के fan हैं और जिन्हें धार्मिक‑पौराणिक हॉरर पसंद आता है। यदि आप कहानी की गहराई और नये तत्वों के भक्त हैं, तो आपकी उम्मीदों को यह फिल्म पूरी तरह से पूरा न करे।
अगर आप ऐसी थिएटर‑अनुभव की तलाश में हैं, जिसमें आप बस पॉपकॉर्न लेकर डरावने दृश्य और माँ की शक्ति का मुकाबला बड़े पर्दे पर देख सकें — तो ये फिल्म आपके लिए अच्छा मनोरंजन है।