अगर देवेंद्र फडणवीस ने राज और उद्धव ठाकरे को एक साथ आने के लिए प्रेरित या प्रेरित करने में भूमिका निभाई हो, तो इससे उनके लिए निम्नलिखित तीन “निशाने” साधे जा सकते हैं:

🎯 1. महा विकास आघाड़ी (MVA) को आपसी झगड़े में उलझाना
राज ठाकरे की छवि एक तेज़, आक्रामक और हिंदुत्व समर्थक नेता के रूप में रही है। अगर वो MVA का हिस्सा बनते हैं, तो:
- NCP और कांग्रेस जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों पर दबाव बढ़ता है कि वो राज ठाकरे के साथ कितनी दूरी बनाकर रखें।
- इससे MVA की अंदरूनी एकता में दरार आ सकती है।
- वोटबैंक कन्फ्यूजन पैदा हो सकता है — विशेष रूप से मुस्लिम, दलित और उदारवादियों में।
🔁 नतीजा: MVA का मुख्य हथियार — “एकता” — कमजोर किया जा सकता है।
🎯 2. मनसे और शिवसेना (उद्धव) के वोटबैंक को एक साथ करके उनको BJP से दूर रखना
अगर राज और उद्धव एक साथ आते हैं:
- BJP को लगता है कि वो दोनों मिलकर एक सीमित क्षेत्रीय गठबंधन बनाएं, जो मुख्य रूप से मुंबई, ठाणे, पुणे और कोकण क्षेत्र में प्रभावी होगा।
- इससे BJP के वोटों में सीधा नुकसान नहीं होता, क्योंकि मनसे और शिवसेना (UBT) दोनों ही मराठी वोटबैंक पर फोकस करते हैं।
- BJP इस दौरान हिंदू वोटबैंक पर खुद को स्थिर रख सकती है, और MVA को नुकसान में डाल सकती है।
🔁 नतीजा: एक तरह से BJP अपने वोटों को बचाकर, MVA को कमजोर कर सकती है, जबकि ठाकरे बंधु आपस में सीमित क्षेत्र में लड़ते रहें।
🎯 3. उद्धव ठाकरे को एक तरह से ‘defensive’ में डालना
अगर राज ठाकरे उद्धव के साथ आ जाते हैं, तो:
- उद्धव को अपने एजेंडे में हिंदुत्व की वापसी करनी पड़ती है, जो उन्होंने कांग्रेस और NCP के साथ रहते हुए हल्का कर दिया था।
- इससे उनका सेक्युलर इमेज कमजोर होती है, और MVA के कुछ पारंपरिक वोटर्स (जैसे मुस्लिम समुदाय) असमंजस में आ सकते हैं।
- वहीं दूसरी ओर, राज ठाकरे के आने से खुद उद्धव को अपने नेतृत्व की चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि राज का भाषण और करिश्मा जनता में प्रभावी रहा है।
🔁 नतीजा: BJP को लड़ाई से बाहर रहकर भी फायदा मिलता है, और ठाकरे आपस में संतुलन साधने में उलझ जाते हैं।
🤔 तो क्या ये सब फडणवीस की योजना का हिस्सा हो सकता है?
- Devendra Fadnavis एक रणनीतिक खिलाड़ी माने जाते हैं, और उन्होंने 2019 के बाद की घटनाओं में साफ दिखाया है कि वो पर्दे के पीछे बड़ी राजनीति खेलने में माहिर हैं।
- राज और उद्धव की सुलह, अगर BJP की सहमति या ‘प्रेरणा’ से हो रही है, तो ये निश्चित ही फडणवीस का एक “राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक” कहा जा सकता है।
🔚 निष्कर्ष (Conclusion):
हां, अगर देवेंद्र फडणवीस ने ठाकरे बंधुओं को एक साथ लाने में भूमिका निभाई है, तो यह सचमुच एक तीर से तीन निशाने साधने जैसा है —
- MVA की एकता में दरार,
- मराठी वोटबैंक को आपस में उलझाना,
- उद्धव ठाकरे की राजनीतिक धार को संतुलित करना।
यह राजनीतिक चाल बेहद सोच-समझकर चली गई लगती है। हालांकि अभी बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि यह गठबंधन (या मेल) आखिरकार किस रूप में सामने आता है और इसका असर BMC चुनावों और 2029 तक की राजनीति पर क्या पड़ता है।